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भारतीय शेयर बाज़ार में सबसे बड़े घोटालों की सूची

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पूंजी के लिहाज़ से भारतीय शेयर बाज़ार, 5 सबसे बड़े शेयर बाज़ारों में से एक है। भारतीय शेयर बाज़ार का कुल मार्केट कैप 3.21 ट्रिलियन डॉलर के करीब है। ऐसी जगह जहां इतना पैसा एक से दूसरे के पास आता-जाता रहता है, यह लालच घोटाले और धोखाधड़ी करने के लिए उकसाता है। इस ब्लॉग में भारतीय शेयर बाज़ार के सबसे बड़े घोटालों की सूची दी गई है।

Other names: Securities Scam, 1992’s Scam of Indian Stock Markets

हर्षद मेहता घोटाला

कब: साल 1992

मुख्य अपराधी: हर्षद मेहता और कुछ बैंक कर्मचारी

राशि: ₹4,000 करोड़

अन्य नाम: प्रतिभूति घोटाला, 1992 का भारतीय शेयर बाज़ार घोटाला 

भारतीय शेयर बाज़ार के इतिहास में, मुमकिन है कि हर्षद मेहता घोटाला सबसे बड़ा भारतीय घोटाला है। जाने-माने ब्रोकर हर्षद मेहता ने बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) में हेरफेर करने के लिए बैंक कर्मचारियों के साथ सांठगांठ की थी।

कथित तौर पर, हर्षद मेहता और कुछ बैंक कर्मचारियों ने नकली बैंक रसीदें (BRs) जारी कीं, जो तब अन्य बैंकों को इस धारणा के तहत उधार देने के लिए इस्तेमाल की गईं कि वे प्रतिभूतियों (g-secs) के बदले में उधार दे रहे थे। सरकारी प्रतिभूतियों को क्रेडिट जोखिम मुक्त ऋण साधन माना जाता है, लेकिन नकली बैंक रसीदों का व्यावहारिक रूप से कोई मूल्य नहीं होता है।

हर्षद मेहता ने कुल ₹4,000 करोड़ की राशि का घोटाला किया, जिसका उपयोग स्टॉक की कीमतों में हेरफेर करने के लिए किया गया था।

केतन पारेख घोटाला

कब: साल 2001

मुख्य अपराधी: केतन पारेख

राशि: ₹40,000 करोड़

अन्य नाम: ज्ञात नहीं 

यह एकमात्र ऐसा घोटाला  है जिसका मुकाबला भारतीय शेयर बाज़ार में हुई सबसे बड़ी धोखाधड़ी के मामले, हर्षद मेहता घोटाले से किया जा सकता है, यह घोटाला हर्षद मेहता के सलाहकार केतन पारेख ने किया था।

केतन पारेख, जो कि एक स्टॉकब्रोकर था, बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों से प्राप्त हुए पैसे का इस्तेमाल करके सर्कुलर ट्रेडिंग में लगा हुआ था। सर्कुलर ट्रेडिंग तब होती है जब लोगों का एक समूह मिल जाता  है और स्टॉक की कीमतों को बढ़ाने के लिए ट्रेडिंग की ज़्यादा मात्रा की गलत  धारणा बनाने के लिए आपस में स्क्रिप का ट्रेड करता है।

आरोपी, केतन पारेख ने 1998 से 2001 तक 10 शेयरों की कीमतों में हेरफेर किया। इन शेयरों को सामूहिक रूप से K-10 या फिर KP पैक के नाम से जाना जाता था:

  1. Amitabh Bachchan Corp/अमिताभ बच्चन कॉर्प 
  2. Himachal Futuristic Communication/ हिमाचल फ्यूचरिस्टिक कम्युनिकेशन
  3. Mukta Arts/मुक्ता आर्ट्स 
  4. Tips/टिप्स 
  5. Pratish Nandy Communications/प्रतीश नंदी कम्युनिकेशंस
  6. GTL/जीटीएल 
  7. Zee Telefilms/जी टेलीफिल्म्स
  8. PentaMedia Graphics/पेंटामीडिया ग्राफिक्स
  9. Crest Communications/क्रेस्ट कम्युनिकेशंस
  10. Aftek Infosys/अफटेक इंफोसिस

विशेष रूप से, जब 2001 में भारतीय केंद्रीय बजट पेश किए जाने के बाद यह घोटाला सामने आया, तो सेंसेक्स 4.13% गिर गया, जिसके चलते NDA सरकार ने  बाज़ार की प्रतिक्रिया देखने के लिए जांच की।

NSE कोलोकेशन घोटाला

कब: वर्ष 2015

मुख्य अपराधी: चित्रा रामकृष्ण सहित NSE के कुछ अधिकारी

राशि: ₹50,000 करोड़ से ₹75,000 करोड़ (अनुमानित)

अन्य नाम: हिमालयन योगी घोटाला

भारत में सबसे विचित्र स्टॉक मार्केट घोटालों में से एक इस मामले में देश के प्रमुख स्टॉक एक्सचेंज के एक शीर्ष अधिकारी ने दावा किया कि हिमालयी योगी ने उसे  घोटाला करने को कहा था ।

यह घोटाला कोलोकेशन सुविधाओं के इर्द-गिर्द घूमता है, जिससे ब्रोकर अपने सर्वर NSE के डेटा सेंटर में रख सकते हैं, वहीं इससे  वे NSE द्वारा वितरित प्राइस फ़ीड को तेज़ी से एक्सेस कर सकते हैं । हाई फ्रीक्वेंसी वाले ट्रेडर्स के लिए ऐसी सुविधाएं फायदेमंद हो सकती हैं।

कोलोकेशन सुविधाओं के बारे में  कुछ भी गैरकानूनी नहीं होता है । लेकिन, कथित तौर पर, NSE के पूर्व CEO चित्रा रामकृष्ण और उनके कुछ कर्मचारियों ने OPG सिक्योरिटीज़ के साथ इस तरह से सांठगांठ की, जिससे OPG सिक्योरिटीज़ को पता चलता था कि NSE की कोलोकेशन सुविधा में किस सर्वर पर लोड कम है और इसलिए वह सबसे तेज़ है।

इससे उन्हें अन्य ब्रोकरों के मुकाबले फायदा होता था, जो इसी कोलोकेशन सेवाओं का लाभ उठाते थे।

यदि कोई किसी शेयर की कीमत दूसरों के मुकाबले पहले से जानता है, तो वे दूसरों के पैसे का अनुचित फायदा उठा सकता है। उदाहरण के लिए, यदि ब्रोकर A को पता है कि किसी कंपनी के शेयर की कीमत अगले 2 मिनट में बड़ जाएगी, तो वे उस शेयर को अनजाने निवेशकों से खरीद सकते हैं और अनुचित लाभ कमा सकते हैं।

कार्वी घोटाला

कब: साल 2019

मुख्य अपराधी:  Karvy Stock Broking लिमिटेड

राशि: ₹2,300 करोड़

अन्य नाम: ज्ञात नहीं 

भारत में सबसे बड़े वित्तीय घोटालों में  Karvy Stock Broking लिमिटेड (KSBL) शामिल है, जो भारत में एक पूर्व प्रमुख स्टॉक ब्रोकर था, जिसके 10 लाख से ज़्यादा रिटेल ब्रोकिंग ग्राहक थे। KSBL ने अपने ग्राहकों के डीमैट खातों में पड़ी प्रतिभूतियों के बदले कर्ज़  लिया और इन पैसों को कार्वी ग्रुप की अन्य कंपनियों जैसे Karvy Realty में इस्तेमाल कर दिया।

शुरुआती अनुमानों के मुताबिक, KSBL ने HDFC बैंक, ICICI बैंक, IndusInd बैंक, Axis बैंक, Bajaj Finance और Aditya Birla फाइनेंस जैसे बैंकों से शेयरों के बदले लोन लेकर ₹2,300 करोड़ का घोटाला किया और इसके लिए अपने ग्राहकों के स्वामित्व वाले शेयरों का इस्तेमाल किया गया था ।

KSBL ने इनएक्टिव ग्राहकों के डीमैट खातों से कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग नाम के अपने डीमैट खाते में शेयर ट्रांसफ़र करके इस घोटाले को अंजाम दिया और ऋण लेने के लिए कोलैटरल के रूप में ये शेयर उधारदाताओं को अपने स्टॉक के रूप में प्रस्तुत किए गए।

UTI घोटाला

कब: साल 2001

मुख्य अपराधी: यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया

राशि: कम से कम ₹1,800 करोड़

अन्य नाम: ज्ञात नहीं 

यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया (UTI) की स्थापना 1963 में सरकारी अधिनियम के ज़रिए की गई थी और म्यूचुअल फंड के रूप में इसका लगभग 24 वर्षों का एकाधिकार रहा। UTI ने 1988 में ₹6,700 करोड़ के प्रबंधन में अपनी एसेट के साथ विशाल कस्टमर बेस  बनाने के लिए 24 वर्षों के एकाधिकार का प्रभावी ढंग से इस्तेमाल किया था।

इस घोटाले के केंद्र में मुख्य रूप UTI द्वारा शुरू की गई सुनिश्चित रिटर्न स्कीमें (ARS) थीं, जिसके लिए पर्याप्त गारंटी स्थापित नहीं की गई थी। यदि कोई म्युचुअल फंड रिटर्न के निश्चित स्तर का वादा करता है लेकिन उसके पास गारंटीकृत रिटर्न प्रदान करने के लिए पूंजी नहीं है, तो इसकी गारंटी बेकार है।

2001 में, केतन पारेख घोटाले और अन्य कारकों के कारण स्टॉक की कीमतें गिर रही थीं। इसने निवेशकों को अपनी UTI इकाइयों को रिडीम के लिए प्रेरित किया। चूंकि, UTI इकाई मूल्य मनमाने ढंग से निर्धारित किया गया था और एसेट के वास्तविक मूल्य से ऊपर था, बढ़ते निवेशक अपनी यूनिट को रिडीम के लिए UTI पर भारी दबाव डालने लगे।

रिटेल निवेशकों UTI के संकट से अनजान थे , वहीं  SBI और ICICI  जैसे सबसे बड़े निवेशकों के कुछ लोग UTI’s के बोर्ड में थे। इन्होने  UTI के संकट के बारे में दूसरों को पता चलने से पहले ही  बड़े निवेशकों को अपना पैसा बाहर निकलने दिया।

जुलाई में, UTI बोर्ड ने अगले 6 महीनों के लिए अपनी एक स्कीम के लिए यूनिटधारकों को मना करने का फैसला किया और रिडम्पशन को सस्पेंड कर दिया।

सेबी ने रिटर्न सुनिश्चित करने के लिए म्युचुअल फंड के लिए नियमों को कड़ा कर दिया है और वर्तमान में यदि कोई म्यूचुअल फंड एक निश्चित स्तर के रिटर्न का वादा करता है तो उसे वास्तव में गारंटी स्थापित करनी होती है।

अंतिम विचार

भारतीय शेयर बाज़ार में घोटालों में सोशल मीडिया ग्रुप का इस्तेमाल करके कीमतों में हेराफेरी से लेकर कोलोकेशन सुविधाओं से जुड़े बहुत अधिक जटिल घोटाले शामिल हैं। हालांकि, जब भी घोटालों का पर्दाफाश हुआ है, सेबी ने निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए कदम उठाए हैं।

सेबी रजिस्टर्ड प्रोफेशनल द्वारा चुने गए शेयरों और ETFs के संयोजन में निवेश करने के लिए, WealthBaskets पर विचार करें। WealthBaskets देख सकते हैं जो अलग-अलग निवेश रणनीतियों और थीम्स  का पालन करते हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

भारत में सबसे बड़े वित्तीय घोटाले कौन से हैं?

भारत के दो सबसे बड़े घोटाले थे, 1992 का हर्षद मेहता घोटाला और 2001 का केतन पारेख घोटाला।

क्या भारतीय शेयर बाज़ार में हेरफेर किया जा सकता है?

पिछले समय में सोशल मीडिया ग्रुप पर होने वाली पंप-एंड-डंप स्कीम और ब्रोकर द्वारा बाज़ारों में धोखाधड़ी करके भारतीय शेयर बाज़ारों में हेरफेर किया गया है।

भारतीय बाज़ारों को घोटालों और धोखाधड़ी से कौन बचाता है?

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) सहित कई निकाय यह सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार हैं कि भारतीय शेयर बाज़ार में निवेशकों और व्यापारियों द्वारा उचित प्रथाओं का पालन किया जाता है।

भारत में सबसे बड़ा कॉर्पोरेट घोटाला कौन सा है?

भारत में सबसे बड़ा कॉर्पोरेट घोटाला सत्यम घोटाला हो सकता है। इस मामले में Satyam Computer Services के संस्थापक और CEO रामलिंगा राजू ने अपनी ही कंपनी से ₹7,136 करोड़ का गबन किया था।

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